साहस ही के कोप बस, किएं कठिन परिपाप ।
सठ संकट भाजन भए, हठि कुजाति कपि काक ।।
-तुलसीदास
तुलसीदास जी कहते हैं कि दुःसाहस या क्रोध के वश होकर कर्म करने से उसका फल बहुत ही कठोर होता है। नीच और दुष्ट बालि व जयंत इसी प्रकार हटपूर्वक कर्म करके संकट के पात्र हुए।