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Friday, October 15, 2021

विपत्ति भए धन ना रहे, होय जो लाख करोर। नम तारे छिपि जात है, ज्यों रहीम भए भोर ।। -रहीमदास

 


विपत्ति भए धन ना रहे, होय जो लाख करोर।

नम तारे छिपि जात है, ज्यों रहीम भए भोर ।। -रहीमदास

रहीमदास जी कहते हैं कि मनुष्य संकटकाल के लिए लाखों-करोड़ों का धन इकट्ठा करता है, लेकिन जब संकट आता है तो इकट्ठा किया हुआ सारा धन धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है। ठीक वैसे ही, जैसे रात में आकाश तारों से भरा रहता है; लेकिन जब सूर्य उदित होता है, तब सारे तारे सूर्य के प्रकाश के कारण आंखों से ओझल हो जाते हैं।

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