मेरी मेरी करत क्यौं, है यह जिमी सराय।
कइ यक डेरा करि गये, किये कई कनि आय।। -नागरीदास
संत नागरीदास जी कहते हैं कि हे मनुष्य! तू मेरी-मेरी क्यों करता है। यह दुनिया तो एक सराय की भांति है, जिसमें कितने ही लोग रहकर चले गए और कितने ही रहने के लिए आ रहे हैं अर्थात् इस संसाररूपी सराय में किसी का भी अपना कुछ नहीं है