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Friday, October 15, 2021

कह 'मलूक' हम जबहिं तें, लीन्हीं हरि की ओट। सोवत हैं सुख नींद भरि, डारि भरम की पोट।। - मलूकदास

  कह 'मलूक' हम जबहिं तें, लीन्हीं हरि की ओट।

सोवत हैं सुख नींद भरि, डारि भरम की पोट।। -
मलूकदास
संत मलूकदास जी कहते हैं कि जब से हमने प्रभु का सहारा लिया है, तब से हम पैर फैलाकर सुख की नींद सोते हैं और भ्रम की पोटली हमने उठाकर फेंक दी है।

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