रहिमन गली है सांकरी, दूजो नहिं ठहराहिं ।
आपु अहै तो हरि नहीं, हरि तो आपुन नाहिं ।।
-रहीमदास
रहीमदास जी कहते हैं कि भक्ति की गली बहुत संकरी है। इसमें ईश्वर और अहंकार एक साथ नहीं रह सकते। यदि किसी के हृदय में अहंकार है तो वहां प्रभु के लिए कोई जगह नहीं, क्योंकि उसमें प्रभु के प्रति भक्तिभाव कभी नहीं आ सकता और जिसके हृदय में प्रभु-भक्ति है तो उसके हृदय में अहंकार का कोई स्थान नहीं है।