जड़ चेतन गुन दोषमय, बिस्व कीन्ह कर र।
संत हंस गुन गहहि पथ, परिहरि बारि विकार।। -तुलसीदास
तुलसीदास जी कहते हैं कि संसार में बुराइयां भी हैं और अच्छाइयां भी यदि संत बनना हो तो हंस की तरह गुणरूपी दूध को ग्रहण कर लो और दोषरूपी जल को छोड़ दो।जड़ चेतन गुन दोषमय, बिस्व कीन्ह कर र।
संत हंस गुन गहहि पथ, परिहरि बारि विकार।। -तुलसीदास
तुलसीदास जी कहते हैं कि संसार में बुराइयां भी हैं और अच्छाइयां भी यदि संत बनना हो तो हंस की तरह गुणरूपी दूध को ग्रहण कर लो और दोषरूपी जल को छोड़ दो।
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विपत्ति भए धन ना रहे, होय जो लाख करोर। नम तारे छिपि जात है, ज्यों रहीम भए भोर ।। -रहीमदास रहीमदास जी कहते हैं कि मनुष्य संकटकाल के लिए ला...