कामी कबहु न गुरु भजै, मिटै न संसय सूल
और गुनह सब बकसिहों, कामी डार न मूल।। -कबीरदास कबीरदास जी कहते हैं कि काम के पाश में बंधा मनुष्य गुरु को प्रेम नहीं कर सकता। इसलिए उसके मन से संशय का कांटा नहीं निकलता। ईश्वर स्वयं कहता है कि अन्य सब गुनाह तो मैं माफ कर देता हूं, लेकिन कर्मों को मैं नहीं बख्शता। ऐसे व्यक्ति की न डाल है, न मूल।