तिनका कबहुं ना निन्दिए, जो पांवन तर होय।
कबहु उड़ी आंखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।। -कबीरदास कबीरदास जी कहते हैं कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा मत करो, जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है। यदि कभी वह तिनका उड़कर आंख में आ गिरे तो कितनी गहरी पीड़ा होती है।