देस काल करता करम, वचन विचार विहीन ।
ते सुरतरु तर दारिदी, सुररसि तीर मलीन।।
-तुलसीदास
स्थान, समय, कर्ता, कर्म और वचन का विचार करते ही कर्म करना चाहिए। जो इन बातों का विचार नहीं करते, वे कल्पवृक्ष के नीचे रहने पर भी दरिद्री और देवनदी श्री गंगा जी के तीर पर बसकर भी पापी बने रहते हैं।